Sunday, September 13, 2009

महाराष्ट्र से जवाब मांगेगा विदर्भ

महाराष्ट्र से जवाब मांगेगा विदर्भ- दैनिक जागरण
ओमप्रकाश तिवारी, मुंबई
http://in.jagran.yahoo.com/epaper/index.php?location=49/edition=2009-09-13/pageno=6
महाराष्ट्र के लिए नई सरकार चुनने से पहले विदर्भ इस बार अपने नेताओं एवं मत मांगने वाले राजनीतिक दलों से हिसाब-किताब बराबर कर लेना चाहता है। योजना आयोग एवं महालेखा परीक्षक की हाल की रिपोर्टों ने उसे इसके लिए पर्याप्त आधार भी मुहैया करा दिए हैं। विदर्भ के नेताओं दत्ता मेघे एवं विजय दर्डा द्वारा मार्च 2006 में विदर्भ के साथ हो रहे अन्याय की आवाज संसद में उठाए जाने के बाद भारत सरकार की खुमारी टूटी और प्रधानमंGी ने योजना आयोग को विदर्भ की स्थिति का अध्ययन करने के निर्देश दिए। योजना आयोग ने एक समिति बनाई, जिसने मई 2006 में अपनी 244 पृष्ठों की रिपोर्ट सौंप दी। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि पश्चिम महाराष्ट्र के नेताओं द्वारा विदर्भ के साथ अपनाए गए पक्षपातपूर्ण रवैए के कारण ही विदर्भ दुर्गति झेल रहा है।

इसके बाद 2006-07 की महालेखापरीक्षक रिपोर्ट में भी विदर्भ के साथ हुए पक्षपात को विस्तार से रेखांकित किया है। महालेखापरीक्षक की रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य के कुल बिजली उत्पादन का 60 प्रतिशत विदर्भ में होता है। इसके बावजूद विदर्भ के 32 लाख किसान 11 प्रतिशत बिजली का ही उपभोग कर पाते हैं। राज्य का गन्ना उत्पादक क्षेG पश्चिमी महाराष्ट्र 65.5 फीसदी बिजली की खपत करता है। पुणे के छह गन्ना उत्पादक जिलों में कुल 3.57 लाख पंपसेट हैं , जबकि विदर्भ में पंपसेटों की संख्या वर्ष 2004 के निर्धारित कोटे से काफी कम सिर्फ 2.15 लाख है। विदर्भ के किसानों के बीच काम करने वाले स्वयंसेवी संगठन विदर्भ जनांदोलन समिति के संयोजक किशोर तिवारी कहते हैं कि इसी अन्याय के चलते पिछले पांच वर्षो में यहां 6000 किसानों को आत्महत्या करनी पड़ी है।

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